Sunday, January 10, 2016

छत्तीसगढ़ प्रथा..

हमारा छत्तीसगढ़ अपने आप में कई अनोखी संस्कृतियाँ लिए हुए है। जो शायद भारत के किसी और राज्यों में ना हो। जहाँ त्योहारों में हरेली,भोजली आदि कई हैं,तो प्रथा में एक प्रथा गिंया या मितान बदना अर्थात किसी मित्र का  किसी अन्य मित्र से नारियल के आदान प्रदान और कुछ लोगों के उपस्थिति में मित्रता का ऐसा रिश्ता बनाना।जिसमें उन दोनों का परिवार एक होकर उनके दुःख सुख के साथी बन जाते थे । एक तरह से दो परम मित्र या घनिष्ठ मित्र इस प्रथा में एक दूसरे को गिंया या मितान कहते थे । और एक दूसरे के यहाँ सुख और दुःख दोनों के आने के पहले से ही हाजिर हो जाते थे । अगर वे शादीशुदा हैं और उनके बच्चे हैं तो वे बच्चे अपने पिता को पिता और पिता के गियां को गियां पापा या गियां बाबू  कहते थे। और इसी तरह माता के लिए भी यही प्रक्रिया चलती थी ।  
माताएं अपने पति के गियां को आते हुए देखती या सुनती तो,अपना सर ढँक लेती और अपने स्थान से किसी और स्थान चली जाती,अर्थात जिस प्रकार महिलाये अपने पति के बड़े भाई का आदर करती वही आदर पति के गियां का होता,इस रिश्ते में गियां पति और गियां पत्नी कहने का कोई रिवाज नहीं था। महिलाये आपस में  अपने बच्चो के गियां पापा कह ,एक दूसरे को चर्चा या बातचीत करती थीं । 

आज के दौर में तो ऐसी प्रथा बंद हो रही है, पर फिर भी जो  पुराने समय से गियां हैं,वो अपनी प्रथा या मित्रता निभाते आ रहे है। त्योहारों का हाल भी अब पहले जैसा नहीं रहा लोगों में उत्साह अब ज्यादा नज़र नहीं आती,शायद लोग अब इनमें कुछ तथ्य ढूंढ ना पाते हों। 

मेरे पिताजी और दादाजी के भी गियां है,जिन्हे हम मिलने पर गियां पापा या गियां दादा या सिर्फ दादाजी ही कह कर पुकारते हैं। 

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