Monday, January 4, 2016

मामा गांव और वहाँ के लाइफटाइम उपहार .

यूँ तो सबको अपना ननिहाल अच्छा ही लगता होगा ,पर बचपन में गांव घूमने में जो मजा आता था,बड़े होने के बाद बचपन वाली बात नहीं रह जाती।
स्कूल की गर्मी छुट्टी होने के बाद जी फड़फड़ाता रहता था कि कब पापा मामागांव छोड़ने जाये या मामागांव से कोई लेने आ जाये,बात ही कुछ ऐसी थी ममागांव की ,तालाब,बगीचा,खेत,दोस्त सब कुछ था.
भाई कम दोस्त ,हाँ ,मामाजी के बेटे,बड़े मामाजी के बेटे सब शहरो से गर्मी की छुट्टिया मानाने आये रहते बस फिर क्या सब मिल के बगीचा आम तोड़ने जाते,साथ में माचिस की डिब्बियो में नमक,मिर्च पाउडर  रखके भी ले जाते थे.मोना(बड़े मामा का  छोटे बेटा ),सोनू ,सोमेश,विनोद,धीरज,गोलू ,मनु ,ओंकार ,मेरा छोटा भाई छोटू सब के सब,एक बार की बात है,मोना ने एक खेत को उन्ही लोगो का बताकर आम के पेड़ में चढ़ गया और एक दो और को चढ़ा दिया कुछ देर में काफी आम हो गए,तभी थोड़ी दूर से कोई बुढा जोर जोर से गले फाड़ रहा था,तब मोना को याद आया के ये पेड़ उनका नहीं है रे बाबा हम सब तो धन के खेत के रस्ते भाग लिए मोना अटका रहा ऊपर,खैर बहुत मुस्किल से उसने भी जान बचा ली ,इधर खेत के अंदर चप्पल भी फंस जा रहा था,फिर चप्पल निकल भगा क्युकी भागना तो था डर गए थे सभी. 

ऐसी ही एक बार खेत जाते हुए दोस्तों ने साँप देखा और भागने लगे, मैं थोड़ा आगे गया एक पीले रंग का साँप था 
पर कुछ हलचल नहीं कर रहा था ,मैंने डंडे से उसे दूर से छुआ वो तो मारा हुआ था फिर क्या मैंने उसको डंडे से लटकाकर भईलोगो को डराना शुरू कर दिया फिर बड़े मामा आये और बताये की इसको अहिराज कहते है.
फिर उस साँप को जमीं में गाड़ दिया गया.

तैरने की शुरुवात -मैंने  तैरना  मामा के गांव में ही सीखा,जब मैं कुछ छोटा था तब जब मामा के गांव गए थे ,वही मुझे मेरे छोटे मामा भानु मामा ने तैरना सिखाया,मुझे लगता था की मै कभी तैर ही नहीं पाउँगा,तब एक बार भानु मामा ने तालाब में मुझे अपने पीठ पर रखके तालाब के दूर तक लेके गए और कहा चलो तैरो मई तुम्हे छोड़ रहा हु,मै  न नुकुर कर ही रह था उन्होंने मुझे छोड़ दिया और  मै  डूबने लगा,मुझे याद है उस वक्त मुझे ऐसा लग रहा था की मै मर जाऊँगा लेकिन मैने बचने का प्रयास किया फिर उसी दिन से थोड़ा सुरुवात हुई तैरने की.
मेरे  पापाजी  ने  भी मुझे एक बार  बसंतपुर के रपटा (कच्ची  पूल ) में फेंका था  यहाँ पे  भी  मरने वाली  अनुभव हुई  पर  पापा  से  डरने  के कारण  नहीं  सिख  पाया , वैसे भी घर  में  तालाब जाना  नहीं होता  
तैरना  सिखने के बाद तालाब पार करने का कॉम्पिटिशन करने लगे.

धान की देखभाल- कभी कभी ममागाँव में हम अपने मजे के लिए धान की रखवाली  भी करने चले जाते थे दोपहर में इसी बहाने आम या कुछ बगीचे से भी मजे ले लेते।

गाय चराना - इंसान भी बड़ा अजीब प्राणी है, जो काम उसे मिलता है उसे उसमे मजा नहीं आता ,और जो नही मिलता  चाह रख बैठता है,हम जब मामागाँव जाते थे तब हम कई बार गाय चराने भी गए ,ऐसा नहीं है की कोई हमें काम देता था , हम भी दोस्तों के साथ जाते और वाही बचपन वाली फर्जी बातो में और चर्चाओ में लग जाते उसका भी अपना एक अलग मजा था शायद कोई और ना समझ पाये। 

बाईक की शुरुवात-  तैरने की तरह ही बाईक चलाने की मैं  बहुत कोशीश कर चूका था,पापाजी ने बहुत कोशिश की मुझे सीखाने की पर मैं सिख न पाया क्युकी पापा के गुस्सा और उनसे डरने  के कारन। पर कोई बात नहीं मेरे पास मामागांव था भई ,यहाँ मेरा दोस्त मनु था जो काफी कम उम्र से ट्रैक्टर चला लेता था 
वही मेरा गुरु बना.
एक बार हुआ यु की मनु, मै और दाऊ (मेरी मौसी का बेटा) जो की बहुत छोटा था बैठ के मलनी जा रहे थे,मनु 
के मन में पता नहीं क्या आया उसने मुझे बाइक चलने को दे दी,मैं डर रहा था ,अब मैं आगे,दाऊ बीच में और मनु पीछे उसने कहा डर मत मैं संभाल सकता हु ,फिर मैंने गाड़ी पहले से धीरे धीरे चौथे गेयर की आगे बढ़ ही रहे थे की रास्ते में मोड़ आ गया,मनु बोल ही रहा था गेयर कम् कर,  कम कर मुझसे हुआ नहीं मैंने सीधे मोड़ पे दे धड्ड अच्छा हुआ,की मोड़ पे रेत था शायद किसी के मकान का काम चल रहा होगा,हम यहाँ से उठे दाऊ से वादा करवाया की वो किसी को न बताये पर घर पहुँचते ही उसने इसे ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया।

मैं  हार  मान  जाता  और  गाड़ी सिखने से बचने लग ता  पर मेरा दोस्त  मनु नहीं भूलता की उसे गाड़ी  सीखानी  है  मुझे  आखिर एक दिन  बगीचे में उसने  कहा  बस बहुत  हुआ अब गाड़ी तू  खुद ही संभाल  अकेले ,मैंने जैसे तैसे  गाड़ी  स्टार्ट  की  और चक्कर लगाने लगा  बगीचे  का  तभी  बीच में  मुझे अचानक रास्ता  कटा  हुआ  नजर  आता  है  मैं ने  बहुत मुस्किल से  गाड़ी  ककंट्रोल में कर ली  और शायद आज  मैं  बाईक  चलना सिख ही गया। 





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