Tuesday, January 5, 2016

इम्तेहान खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी...

कई बार हम लाईफ़ के ऐसे इम्तेहान में फंस जाते है,कि शारीरिक,मानशिक और सभी टाइप की तकलीफों से हारे-थके नज़र आते हुए बस यही सोचते है, कि हे भगवान बस इस इम्तेहान से मुझे पार करा दो.

बात उस टाइम की है,जब मेरे बहुत से मेडिकल के एंट्रेंस एग्जाम चल रहे थे, मुझे AFMC के एग्जाम के लिए 
जबलपुर सेंटर जाना था,पापाजी बहुत बिजी चल रहे थे,हम सोच रहे थे कि जाना कैसे है,और कौन जायेगा साथ में,जबलपुर चूँकि हमारे यहाँ से बहुत दूर था, तब मम्मी बोलती है कि मौसा-मौसी पहले जबलपुर में रहते थे,मौसा 
जी की नौकरी वही थी,फिर मेरा दिमाग काम करने लगता है कि,इस बार पापा को तकलीफ नहीं देना है,
कैसे भी हो मौसा जी के साथ ही जाना है। 

मैंने मौसाजी को फोन किया और सारी बातें बताई वो राज़ी हो गए, उन्होंने कहा, बस से जाना सही रहेगा एग्जाम से पहले दिन बस से निकल जायेंगे आराम से,बस फिर मैं भी टेंशन फ्री हो गया। 

एग्जाम से एक दिन पहले मुझे बिलासपुर पहुचना था,मौसाजी कटघोरा से बिलासपुर आते फिर साथ में जबलपुर के लिए निकलने का प्लान था, फिर इस दिन सुबह मैं बिलासपुर के लिए बिर्रा से बस पकड़ता हूँ,बस अपनी स्पीड से चल रही थी,कि 18-20 कि.मी के बाद बस का गेयर काम करना बंद कर दिया,बस पहले गेयर से आगे 
नहीं बढ़ पा रहा था,फिर क्या सभी यात्री बस से उतर के दूसरे बस का इंतज़ार करने लगे,बस कुछ देर बाद मिल 
गया पर मुझे डर था ज्यादा लेट न हो जाये बिलासपुर पहुँचते, क्योकि मौसाजी से बात करने के अनुसार वो दोपहर तक पहुचने वाले थे। 

मै बिलासपुर पहुचता हूँ, बस से उतरते ही खतरनाक धुप का सामना हुआ,मैं मौसा को कॉल करता हूँ ,कहाँ पहुंचे मौसाजी वे बोलते है काम फंसा हु,जल्दी निकलता हूँ मैंने पूछा कितना टाइम लग जायेगा आपको आने में वे बोले 2 घंटे मैं सोचता हूँ,चलो अब काटते है 2 घंटे ,पास में ही एक जूस वाला  जूस निकल रहा था,मुझे पिने की इक्षा हुई, मैं गया और आम जूस पीकर वहीं काफी देर तक बैठा रहा,फिर कुछ देर बाद लगा कि चलो अब यहाँ से निकलते है,कब तक बिचारे का जगह लूंगा,फिर बस स्टैंड के पास हनुमान जी का मंदिर था,मैं वहाँ  बैठ गया.

वहाँ बैठे कई घंटे हो चुके थे,मैंने फिर मौसाजी  को फोन किया वो बोले निकल गया हूँ,बस आधे रस्ते में है,मुझे लगा चलो 1 घंटे में आ जायेंगे,पर वे नहीं दिखे अब शाम हो रही थी 5 बजने वाले थे,फिर मौसाजी का कॉल आता है वो पहुंच गए,मैं इधर उधर घूमने के बाद उन्हें मिल ही गया,मुझे गुस्सा भी आ रहा था की इतना लेट,पर सोच 
रहा था की ,काम के वजह से फंसे रहे होंगे और बता नहीं पाए रहे होंगे। 

हमने होटल में खाना खाया,वेटर ने पूछा था की सब्जी में  क्या लाऊ  उसने पूरा मेनू भी बताया,मुझे मौसाजी ने पूछा तुम क्या लोगे,मैंने झिझकते हुए आप जो बोले और थोड़ा डरता भी था वही पापा वाली फीलिंग और मौसाजी लगते तो पुलिस वाले जैसे थे पर पुलिस नहीं थे ,उन्हें करेले की सब्जी बहुत पसंद है वो मेरे लिए भी वही बोलते है
मुझे करेले की सब्जी पसंद नहीं है पर बोल नहीं पाता,जैसे तैसे खाने के बाद बस के रिजर्वेशन के लिए स्टैंड पहुँचते है. 

सीट रिज़र्व हो जाता है ,बस रात में 11 बजे छूटने वाली थी , अब हमें फिर वेटिंग करना था टाइम जो नहीं हुआ था अभी, जैसे तैसे ये टाइम भी कटता है,अब हम बस में बैठ चुके थे बस चलती है ३-4 घंटे बाद बस एक सुनसान में ढाबे के पास रूकती है,पूछने पर पता चलता है यहाँ से मध्यप्रदेश स्टार्ट होगा (जबलपुर म.प्र.में है ) तो हमें दूसरी बस आके ले जाएगी इस बस का सफर इतना ही था,करीब फिर 1 घंटे के इंतजार के बाद एक मस्त सी बस आती है,और हम रिलैक्स हो जाते है. 

हम सभी यात्री बस में चढ़ने की कोशीश करते है,पर सब परेशान ड्राइवर,कंडक्टर ने साफ़ मन कर दिया बस में कोई जगह नहीं है,देखने पर भी पूरी बस भरी हुयी थी,अंदर सब सो रहे थे,हम सभी यात्रियों ने हंगामा करना शुरू कर दिया,सब अपना अपना रिजर्वेशन दिखा रहे थे,ड्राइवर ने कह दिया रिजर्वेशन यही तक था अब कोई रिजर्वेशन नहीं है,सभी यात्री उसे डराने धमकाने लगे किसी ने बोला  की मैं तुम्हारी कंपनी के खिलाफ कम्प्लेन करूँगा,पर ड्राइवर ने साफ़ कह दिया जो करना है कर लेना ,मालिक को तो कोई बोलता नहीं,सब हमपे ही चढ़ते है सब तुम यात्रियों की गलती है,भुगतना हमको पड़ता है,  इससे साफ़ पता चलता है की ये शिलशिला  हमेशा का होगा, जैसे तैसे उसने कह दिया,बस में आ सकते हो,पर जगह तुम जानो,सब मजबूर थे आधी रात को कौन दूसरा बस देखे वो भी इस सुनसान में,बस में दम घुटने वाला माहौल था,जो यात्री पहलेसे इस बस में थे वो अपनी सीट में किसी को क्यों बैठते फिर भी 2 -4 लोगों ने किसी किसी को जगह दे दिया,फिर भी अधिकतर सामने ड्राइवर,कंडेक्टर वाली जगह पर खड़े थे कुछ वही निचे बैठ गए,ड्राइवर बहुत गुस्से में था,फिर भी उसने मुझे बस के इंजन वाली जगह जो चौड़ी होती है जहा एक लोहे का पिलर लगा होता है,उसकी ओर बैठने का इशारा किया पर उसमे पहले से ही 4 बौद्ध भिक्षु बैठे थे,मैं  फिर भी वहा बैठने की कोशिश करता हु,पर मुझे लग रहा  बैठना 
एक भिक्षु को अच्छा नहीं लग रहा था,वो मुझे बिलकुल भी सहयोग नहीं कर रहा था,उल्टा धीरे धीरे धकेलने की कोशिश करता,मैं मन सोचता हूँ सब साले दिखावे के हैं, मैं उस पिल्लर के सहारे अपना तशरीफ़ टिकने की कोशिश करता रहा,उधर मौसाजी भी बस के दरवाजे की सीढ़ी के ऊपर बैठे होते है.

काफी देर वैसे ही बैठे हुए भी,मुझे नींद आने लगती है,मौसाजी मुझे आदेश देते है कि पीछे जाओ और बैठो,कही पर जगह देख के,मैं जाता हूँ ,एक बच्चा सोया था,उसको बिना डिस्टर्ब करते हुए बैठ जाता हूँ,पर उसके  माँ की नज़र मुझे बुरी तरह घूरती है,वो कहती है आप यहाँ से उठो मेरा बच्चा उठ जाएगा आप कैसे बच्चे की जगह पे बैठ सकते हो,मैं वहां से उठकर सामने आ रहा था कि मौसिया (मौसा जी) जी आकर मुझे एकदम पीछे लेजाते है 
जहा कुछ लफंडर सोये हुए थे वे उनको बोलते है कि इसे सोना है, भाईलोग कुछ नहीं बोलते जगह दे दते है.
ये सीट छोटी बेड जैसी होती है,जिस पर 4 लोग आराम फरमा सकते है,मैं सोने की कोशिश करता हूँ.उधर मौसाजी को भी किसी ने जगह दे दिया था,मैं सो जाता हूँ। 

सुबह जब रौशनी आती है आँख खुलती है,लफंडर भाईलोग नहीं थे शायद वो जा चुके थे ,पर मेरे पास में एक महिला अपने 6-7 साल बच्चे के साथ बड़ी परेशानी  वाले भाव में बैठी है,मुझे कुछ समझ आता इससे पहले वो जल्दी से अपने बच्चे की मुंडी पकड़ के खिड़की में डाल देती है,बच्चा पूरा डैम लगा के उल्टिया मारने लगता है,
बस के चलने के कारण उलटी के छींटे मुझपर पड़ने लगते है,और मेरे दिन की शुरुवात उल्टी से नहां के होती है। 

बीच में बस रुकता है करीब 6 बज रहे थे,ड्राइवर झोपडी वाले दुकान से पारलेजी की कई पैकेट लेता है,मुझे लगता है,ये सारा खाने वाला है पर वो सड़ासड़ पैकेट फाड़ते जाता है और सब बिस्कुट को हाँथ से टुकड़ा कर कर के कौंवों को खिलाने लगता है,शायद भक्ति भाव वाला रहा होगा।

हम अब जबलपुर पहुँच चुके थे,कल के बीते हुए थकाऊ रात और दिन के बाद,आज  मुझे पेपर देना था,
पेपर ख़त्म होने के बाद,बाहर आता हूँ,मौसाजी पानी का बोतल लेकर खड़े है,पानी पिता हूँ,फिर खाने की तलाश में निकलते है ,एक होटल अच्छी दिखती है,वहाँ खाना खाए हालाँकि रेट के हिसाब से न तो खाना अच्छा था,ना खाने की मात्रा। 

मौसाजी से वापस जाने के बारे में पूछने पर की अब ट्रैन से चले क्या,उन्होंने मना कर दिया, कुछ कारन रहा होगा,
मैंने भी ज्यादा कुछ नहीं सोचा न बोला,फिर बस का रिजर्वेशन हुआ,वेटिंग हुयी और मुझे घर पहुंच के आराम करने की इच्छा हुई पर सफर बहुत दूर का था,इस बार बस में कोई दिक्कत नहीं हुयी,ना इधर ना उधर,आराम करते हुए बिलासपुर पहुंच गए,अब मौसाजी को कटघोरा के लिए बस पकड़ना था,उन्हें बस तुरंत मिल गयी ,उनको  प्रणाम कर विदा किया।

मुझे भी कुछ देर बाद बिर्रा की बस मिल गयी,मैं भी अपने परमधाम घर पहुँच चूका था। पर आज भी उनदिनों को याद करने का मन नहीं होता,कैसा दिन था वो इम्तेहान खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी ॥ 







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