Tuesday, January 5, 2016

मेरा पैर सीधा कर दो....

कुछ रिश्तों के साथ हम इस दुनिया में आते है,और कुछ ये दुनिया हम को दे जाती है,जो हमारे सगे तो नहीं होते पर जब वो हमें नहीं दीखते तब पूछ बैठते है,यार बड़े दिनों से वो दिखे नहीं।


स्कूल से आने के बाद मेरा सारा वक्त दुकान पे ही बीतता,दुकान जाने का मन तो होता नहीं था पर दुकान घर से लगे होने के वजह से जाना ही पड़ता,क्युकी कभी कभी कस्टमर्स की भीड़ लग जाती थी,कंट्रोल करने के लिए मेरे जैसे जांबाज की जरुरत हो जाती, हाहाहा``



दुकान और ग्राहक के बीच भी एक रिश्ता बन जाता है ,ये बात आज मुझे समझ आती है, पापाजी को ये काम अच्छे से आता था.

मैं जब दुकान में बैठता था,तब कई ऐसे ग्राहक आते जो रेगुलर थे, जिन्हे मैं लगभग रोज ही देखता था,पर किसी से कभी काम के आलावा कोई बातचीत  नहीं करता और न ही वो करते।
इन सब के बीच ही रोज शाम अगर मैं  दुकान पर होता था तो एक ब्यक्ति का डर बना रहता, डर भी यु की वो जब भी आते हवाई जहाज में सवार होकर आते,
उनको हमसे और नौकरों से जल्दी कराने की ही सूझी रहती,वो पास के गांव घींवरा  के थे,और बैद्य थे,अंग्रेजी और आयुर्वेदिक सबकी जानकारी रखते,
बहुत से लोगो के वो ही इलाज थे,लोगो को बहुत भरोसा था उनपर,


प्यार से हम सभी उन्हें महराज  बुलाते, नाम उनका है(था नहीं है अब भी कई लोगो के दिल में ) श्री रामाधार तिवारी , हर शाम उनका ५-६ बजे के बीच दर्शन हो जाता था,चाहे सर्दी हो या गर्मी या बरसात

उनके जीवन का कर्म था रोज मेरे गांव बिर्रा आना, उनके बातो में हास्य ब्यंग भरे होते थे,हमेशा रोने वाले को भी
हँसा कर चले जाते,
हर दवाइयों का उन्होंने अपना अलग नाम बना रखा था जैसे chlorodiene को डीन डॉन ,मतलब ऐसे ही कुछ भी नाम दे रखा था उन्होंने जिन्हे हम बचपन से सुनते हुए,दिमाग में बैठा चुके थे,हाँ कोई नया नौकर आ जाये तो उसे समझने में दिक्कत होती पर महराज जी उनको अच्छी तरह से सिखा देते, सिखाना उनको अच्छे से आता था, हूं , मुझे भी उन्होंने नाम दे रखा था सुखराम,लम्बू ,हालाँकि मैं लम्बा नहीं था,पतले होने के वजह से लम्बा लगता रहा होऊंगा।
वैसे यूरोप आने से पहले वे मुझे  विदेशी बाबू भी बुलाने लगे थे.
वे  रोज बिर्रा बाजार से कुछ न कुछ ले जाते, लहसुन,प्याज उनके खाने से दूर थे,बजरंग बलि  उनके इष्ट थे,अक्सर धोती कुर्ता पहने महराज अपने बाइक स्प्लेंडर में धकधकाते हुए हर शाम बिर्रा की गलियो में नजर आ जाते।
वे आम बुजुर्गों की तरह नहीं थे ७०-८० की आयु  की थकान हमने उनमे कभी नहीं देखि ,चंचल मिज़ाज़ के महराज जी हमेशा चारों ओर नज़र रखते थे.
पापा और महराज कभी कभी  गुड़ाखू (tobacco paste) किया करते थे,इस मामले में नो रूल्स,,


अभी यूरोप आये मुझे कुछ महीने हुए थे,मैं रोज घर पे बात जरूर करता हूँ,एक दिन मम्मी से बात करते हुए

पता चलता है,महराज का बिर्रा से घींवरा जाते एक्सीडेंट हो गया और उसमे महराज जी की मृत्यु हो गयी.
मम्मी ये बात बोलते हुए मुझे समझाती रहती है की बेटा तू दुःख मत करना।
थोड़ा विस्तार से पूछने पर आगे बताते हुए,मम्मी कहती है की ट्रक से उनका एक्सीडेंट हुआ,गलती ट्रक वाले की थी काफी समय तक मेडिकल हेल्प न मिलना और अधिक खून बह जाने से महराज जी की मृत्यु हो गयी.
एक्सीडेंट ऐसे हुआ था की सीधे लेटे हुए महराज के पैर उल्टे से हो गए थे और अंत समय महराज जमींन पर पड़े हुए बोल रहे थे मेरा पैर सीधा करदो।।






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