Thursday, January 7, 2016

रामप्यारी...

  चाह नहीं कुछ दुनिया से बस सबके प्रेम का प्यासा हूँ, तन्हाई ना हो जीवन में कर,मैं निश्छल रिश्ते बनाता हूँ। 

हमारे घर का काम शुरू हो रहा था,घर के सामने रेत,गिट्टी वगैरह रखे गए थे,उस समय मैं आठवी, नवमी क्लास में था, दुकान के पास खोली में प्लाईवूड खड़ी स्थिति में दिवार पर टिके रखे थे,जो छोटी झोपडी जैसे लग रही थी।  
उस समय मैं सुबह,सुबह दुकान खोलता था,पापा घर के काम पे ध्यान देते,एक दिन सुबह मैंने देखा कि दुकान के  सामने रोड के दूसरे साइड,एक कुतिया अपने बच्चों को दूध पिला रही थी, मुझे उन पप्पीज के साथ खेलने का मन हुआ, मैंने कुतिया जी को आवाज दी ,और वो अपनी पूरी फैमिली के साथ दुकान के सामने हाज़िर होगयी,सभी बड़े प्यार से मेरी ओर देख रहे थे,उनकी आँखों में उम्मीद थी,मैं जल्दी से घर के अंदर गया और कुछ बिस्किट्स लाकर उनको दिया,सबने खा लिया और वही पुंछ हिलाते खड़े रहे,सभी बच्चो में से एक बच्ची मेरे से ज्यादा घुल मिल रही थी.
अगले दिन मैं फिर दुकान खोलने  लगता हूँ ,तो देखता हूँ पूरी फैमिली आकर रेत में खेल रहे थे,मुझे ख़ुशी हुयी उन्हें देखकर, मैंने सिटी बजायी और वो सारे के सारे मेरे पास आके,पूछ हिलाने  लगे ,इन बच्चो की माँ कुतिया बड़ी शांत स्वाभाव की थी,वो चुपचाप खड़ी रहती, मैंने आजतक ऐसे शांत कुतिया नहीं देखि,मैंने आज मम्मी से कुछ उनके खाने के लिए लाने को कहा,वो बच्ची फिर मेरे सांथ खेलने लग गयी,मम्मी को बोले काफी देर हो गए थे,मैं फिर से आवाज देने वाला ही था कि मम्मी रोटी बनाकर ले आई थी,और उनको एक कार्टून के टुकड़े पर रख दिया उनके सामने,उन्होंने सारी  रोटी खा ली,बच्ची मेरी मम्मी के पास गयी और मम्मी ने उसे रामप्यारी नाम दे दिया,अब हम उसको रामप्यारी कहते,और उसके माँ को रामप्यारी की माँ ,,

अब उनका अड्डा दुकान के सामने की खोली पर रखे प्लाईवुड बन गयी वो सारे बच्चे उसके  अंदर सोये पड़े रहते थे,मम्मी पापा भी कुछ नहीं करते उन्हें,कभी कभी रामप्यारी को खेलने का इतना मन होता की अगर मैं  दुकान के अंदर रहूँ तो वो काउंटर के उपर दो पैर रख के झाँकने लग जाती और बाहार निकाल के ही मानती,वो सब धीरे धीरे बढ़ने लगे और घर का काम भी धीरे धीरे चल रहा था ,
एक दिन रात को दुकान बंद करते वक़्त पापा ने सोचा की चैनल बंद रहेगा और ये अंदर ही रहे तो, गंदगी कर सकते है,और उन्हें बाहर निकल दिया,मुझे दुःख हुआ,पापा रात में दुकान का हिसाब देखने पहुँचते है,उन्होंने खोली के तरफ देखा,वो बच्चे चैनल पार करके अंदर आ गए थे,फिर पापा ने उन्हें बाहर नहीं निकाला।

एक दिन रामप्यारी के भाई के साथ ,पड़ोस की एक बदमाश बच्ची खेल रही थी,वो उस बच्चे का पूंछ,कान पकड़ के हवा में घूमाँती,और वो छटपटाता रहता,वो अक्सर ऐसा ही करती शायद उसको ऐसा करना अच्छा लगता रहा होगा,लेकिन आज शायद उसने हद्द करदी, रामप्यारी के भाई ने उसे काट दिया और भाग गया ,हालाँकि चोट सामान्य थी,बदमाश बच्ची घर पहुँचकर बताती है,तो उसका शराबी पिता जो रात दिन शराब में डूबा रहता,वो गुस्से से आगबबूला हो गया,अब उसने सोच लिया की वो कुतिया के बच्चो को नहीं छोड़ेगा,और उसने अपने साथ और आदमी और डंडे ले लिए,रामप्यारी के भाई को उन्होंने मेरे घर के सामने मार दिया,मैं  इस घटना के वक़्त  स्कूल से आ रहा था,मेरे आते तक उसकी चीखें फ़ैल रही थी,मैंने मम्मी से पूछा की क्या हुआ,ये चीखे क्यों,मम्मी ने सारी  बात बताई,उन्होंने कहा की तेरे पापा ने उसे ऐसा करने के लिए मना  भी किया,और उसकी बेटी की गलती भी बताई,पर उसने उल्टा तेरे  पापा को बोल दिया की, अगर आगे ऐसे कुछ होता है तो आप इसकी जिन्मेदारी लोगे,जिम्मेदारी मतलब सारा खर्च ऑन डिमांड,पापा की उसने एक ना सुनी।

मैंने रामप्यारी के बारे में पूछा ,मम्मी बोली वो भाग गयी है कहिं,मैं बहुत दुखी था,उदास बैठा था,शायद मेरे दोस्त मुझे अकेला करने वाले थे,तभी घर के पीछे तालाब की तरब से आवाज आती है,अथाह दर्द से चीखने की 
मैं  जल्दी से छत की तरफ भागता हूँ,और देखता हूँ कि लोगों की भीड़ के बीच रामप्यारी का एक और भाई तड़प रहा है,लोग उसे पत्थर और डंडों से मार रहे थे,मैं  ये और नहीं देख सका लेकिन छत में ही रुका रहा रोता रहा,
और आवाज़ बंद हो गयी,वो भी नफरत के आगे हार गया,क्या हक़ है हमें किसीको  मारने का,मैं सोच ही रहा था की भीड़ मेरे घर के बगल में कुछ दुरी पर आ गयी थी, मुझे लोगों का सर ही नज़र आ रहा था,तभी मैंने देखा,की एक आदमी एक पत्थर को दोनों हांथो में ऊपर से निचे की ओर जोर से पटक रहा है,और फिर एक छोटी चीख के साथ आवाज़ बंद हो गयी,मम्मी ने बताया वो रामप्यारी थी,दुकान में काम करने वाले ने बताया वो वही पर था। 

उस रात रामप्यारी की माँ अकेली हो गयी,शायद मैं भी ,रात भर रामप्यारी की माँ रोती रही,उसकी आँखे अपने मासूम बच्चो को ढूंढ रही थी,वो बच्चे जो कभी उसकी और हमारी ख़ुशी बनते रहे थे। 
 राम की प्यारी,राम के पास चली गयी,राम भी उनको ना बचा पाये। 

बार बार मरने से एक बार अच्छा,डर मौत से नहीं उसके तरीकों से होता है,इतनी दर्दनाक मौत क्यों।

आज भी रामप्यारी की माँ उसी गली में घूमती है,.मम्मी अब भी कभी कभी उसे खाना देती रहती है. 
कुछ ऐसे ही दिखती थी रामप्यारी 


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