Monday, January 4, 2016

कहानी मेरे बेटे बुजु की..

मैं और मेरा छोटा भाई रायपुर गए हुए थे। ट्रेन के माध्यम से  रायपुर से आते वक्त हम बिलासपुर में उतरे,भाई का कालेज जो बिलासपुर में था |और हमारे दिमाग में कुछ और चल रहा था, जिसकी वजह से मै भी बिलासपुर में उत्तर गया मुझे बचपन से ही बेजुबानो में  बहुत रूचि है जिसे लोग नफरत से जानवर बुलाते है शायद कुछ प्यार से भी.,बिलासपुर में पालतू पेट्स के कई दूकान है ,जिसमे से मैं  एक में भाई के साथ चले गया , चूँकि ये पूरा प्लान पहले से तय था भाई ने एक दुकान वाले से बात कर रखी थी,दुकान में प्रवेश करते ही लव बर्ड्स ने स्वागत किया,पग,डॉबरमेंन और बहुत से ब्रीड्स के दोस्त वहा थे पर मुझे  तो पामेरियन दोस्त ही चाहिए था क्युकी मै बचपन से ही उसे देखते आया था कभी फिल्मो में कभी लोगो को घूमाते  हुए ,भाई ने एक प्लास्टिक के डिब्बे की और इशारा किया मै ख़ुशी से उसे खोलने ही वाला था की दुकान के एक सेवक ने उसे खोल दिया खोलते ही दो पैरो के सहारे एक छोटा सा बुजु जी हाँ देखते ही नाम मिल गया था। मुझे मैंने पहले कभी इतना छोटा पाम नहीं देखा था,हमने दुकान वाले से वो डिब्बा लेकर बुजु के साथ बस के लिए निकल गए रस्ते में भाई ने बिर्रा जाने वाली लास्ट बस को देख लिया चुकी हम ऑटो  स्टैंड  पकड़ने के लिए जा रहे थे । पर भाई ने सूझबुझ से ऑटो वाले को रुकवाकर बस को भी  रुकवा लिया, जो की मेरे लिए संभव नहीं था,बस में मुझे और बुजु को बैठा कर भाई उतर गया कालेज के वजह से ,उस टाइम तो मै फ्री ही फ्री   था मेडिकल लाइन वालो को ज़िन्दगी लाइन बहुत देर से जो मिलती है,घर में सब को इतना ही पता था की  रायपुर गया है पर उन्हें
क्या पता,मैंने मम्मी को फ़ोन करके मेन दरवाजे के बाद वाले दरवाजे को खोलने के लिए कह दिया,बस घर के पास ही रूकती है बस से मैं सीधे ही घर पहुंचा ,डिब्बा  मम्मी को कुछ शक हुआ मैंने मम्मी को जैसे ही डिब्बा
खोल के दिखाया वो ककँपकँपी सी हंसी लेते हुए बोली मैंने  जब फ़ोन किया तो मुझे लगा ही था कुछ जरूर करके आ रहा है,अब मम्मी को पता तो चल गया अब मेरी बहन रानी जो ऊपर टीवी देख रही थी,उसको
सरप्राइज करना था,मैं जैसे ही डिब्बा लेकर ऊपर पहुंचा बहन बोलती है क्या है डिब्बे में वो उस वक्त तक सामान्य थी मम्मी बोलती है सफ़ेद रसगुल्ला, बुजु सफ़ेद जो था डिब्बा खोलने पर बहन का ख़ुशी का ठिकाना
नहीं था ,अब आते है पापा दुकान बंद करके रात को  अपना मेडिकल स्टोर जो है,अब बुजु को हमने ऊपर के ही कमरे में रखा था,पापा को उस कमरे में जाने के लिए बोलते है ,पापा देख थोड़ा गुस्सा वाले प्यार से बोलते है क्यों लाया ये बहुत छोटा है बुजु के आँख भी ढंग से खुले नहीं थे ,बुजु पापा के पैरो के साथ रेंगने लगा,फिर क्या मुझे २-३ महीने तक उसे अपने साथ कमरे में रखना पड़ता क्युकी रात को उसे कई बार भूख लग जाती थी
और वो अपना प्यारा सा आवाज लेकर कुं  कुं करता,इस तरह मुझे बुजु का मम्मी बनना पड़ा,पर मम्मी तो मम्मी ही बन सकती है भई बुजु मेरी मम्मी को अपना मानता है उन्ही के आगे पीछे घूमता रहता है,अब तो बुजु बड़ा हो
बुजु सेठ 
गया है २ साल हो गए बुजु सेठ को,,आज घर से बहुत दूर रहना पढता है पढाई के लिए पर बुजु की यादे आती रहती है बेटा जो है मेरा । 

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