कभी सुकून मे दखल देती.
कभी खुशियों मे रूलाती.
कभी हँसते हुए चेहरे को मुरझाकर जाती।
कभी जीते जी इंसान को मुर्दा बना.
कभी नींदों से चैन चुरा कर जाती
कभी भरी हुयी महफ़िल को सुना कर.
शायद मन ही मन मुस्कुराती....ज़िन्दगी
अपनी ही मन की कर जाती.... ज़िंदगी
फ़िर भी हमको बहलाती ...... ज़िंदगी
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