Saturday, February 13, 2016

सोने की खोज में...

बचपन में पढ़ा था.....
काक चेष्टा, बको ध्यानं,स्वान निद्रा तथैव च अल्पहारी, गृहत्यागी,विद्यार्थी पंच लक्षणं।


कुछ सीखा की नहीं इतना तो नहीं पता लेकिन ,जब भी सोना होता है स्वान की तरह हि होता है। जो किसी सज़ा से कम नहीं है,कोई  नींद के बीच अगर थोड़ा भी आवाज़ कर दे तो मैं बर्दास्त नहीं कर पाता ,तुरंत उठ जाता हूँ दखलनदाजी से गुस्सा भी बहुत आता है पर क्या करें सच तो ये है कुसूर अपना है । कभी कभी तो मुझे सोया हुआ समझकर बोलने वालों का मैं स्टिंग ऑपरेशन कर डालता हूँ ,हाहा  अब कर भी क्या सकतें  हैं । 

बिस्तर में जाकर सोने वाला हि था ,कि दोस्तों कि मटरगस्ती की आवाज़ें कान में मंडराने लग जाती है ,कभी कान में ऊँगली डालता हूँ तो कभी बिस्तर से मुंडी दबाने की कोशिश लेकिन बावजूद नींद पास ही नहीं आती । अब तो ये सिलसिला और बढ़ने लगा है ,क्या करें विद्यार्थी जीवन का आनंद तो उठाना ही पड़ेगा फिर चाहे जैसा भी हो । 

सोने की खोज बढ़ती हुई ,इंटरनेट चली जाती है ,और कई सहारे ढूंढ लेती है ,घूमने वाले पंखे की आवाज़ ,झरने,बादल बारिश आप जिससे सुकून लें युट्यूब देवता सब हाज़िर करते हैं । इस खोज का उपयोग कर्णश्रवण यन्त्र (इयरफोन) से करते हुए ,थोड़ा सुकून और सोना तो  मिल जाता है ,पर शांति में जो बात है वो इसमें कहाँ,,,सोने की खोज चलती ही जाती है ,और चलती रहेगी शायद तब तक जब तक मंज़िल ना मिल जाये   ... 

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