Sunday, January 10, 2016

चलो.. भागते हैं..

गिंया पापा (इसकी जानकारी के लिए आप मेरा पोस्ट छत्तीसगढ़ प्रथा पढ़ें) के घर में उनके बड़े भाई के लड़की की शादी थी। तब हम  मैं और मेरा छोटा भाई करीब 8-9 साल के थे। मेरा छोटा भाई मुझसे सिर्फ 1 साल छोटा है,उनके घर जो हमारे गांव से 5 किमी दूर तालदेवरी में है,बारात से एक दिन पहले पहुंचे थे,साथ में मम्मी,पापा भी गए हुए थे। दिन भर इधर उधर किये होंगे की रात को हम खाना वाना  खाकर,गिंया भाई के साथ उनके छत पे चले गए,हम कब वहां सोये कुछ पता नहीं,सुबह जब आँख खुली तो मम्मी पापा को ढूंढने लगे । किसी ने बताया की वो लोग रात में घर चले गए थे । हम सोये थे तो,उन्होंने नहीं उठाया सोचा होगा की,सुबह तो आ ही रहे है और आना भी था उनको वैसे भी शादी वाले घर में चैन से सोने को नहीं मिलता और पापा भी दिन भर दुकान में माथापच्ची कर थके होते थे। अब हमें  इधर उधर करते हुए,काफी टाइम हो गया,कोई ध्यान नहीं दे रहा था ,गिंया पापा और मम्मी के आलावा सब अनजाने से लग रहे थे,हमें भूख भी लगने लगी,तब गिंया भाई से ही बोला,उसने अपनी दादी को बोला तो उन्होंने बात टाल दी ये कहते हुए की नाश्ता बाद में मिलेगा जब सब बैठेंगे ।गिंया भाई ने कोशिश की कि जिस कमरे में नाश्ता रखा हुआ है,वहां से ले आये पर वहां ताला लगा कर दादीजी चली गयी,काफी टाइम बाद हम अब बेसब्र हो गये थे। मैंने और मेरे भाई ने सोचा कि अब हम इस गांव से ही भागते है,फिर क्या हम चल पड़े,सोचा था बिर्रा पहुँच जायेंगे चलते चलते।इससे पहले हमने कभी चला ही नहीं था , कुछ ही दूर चले थे की पीछे देखते कितना दूर छूटा  पर फिर भी,वो गांव दिखाई देता। अब धीरे-धीरे हम अपनी बीच मंज़िल यानि आधा रास्ता तय कर चुके थे,हमें काफी तेज प्यास लग रही थी,हम इस जगह खड़े थे ,वही तालाब था,जिसके बारे में हमने काफी सुना हुआ था कि इसमें भूत रहते है। और वह तालाब लगता भी था भूतिया आसपास बड़े बड़े डरावने से बरगद  के पेंड़, तालाब के बीच में टुटा सा खम्भा ,हमारी वहां जाने की हिम्मत नहीं हुयी । इसी बीच कुछ हमारे पहचान वाले रोड के उस तरफ गाड़ी से जाते हुए नज़र आते हैं,हम उन्हें आवाज़ देने वाले थे,पर वो रफ़्तार से निकल गए शायद उन्होंने हमें देखा नहीं था, और आगे बढ़ते हैं कुछ दूर ही चले थे की छोटे भाई से चला नहीं जा रहा था,थोड़ी देर मैंने उसको पीठ  से उठा कर चलने की कोशिश की,पर मैं  भी थक चूका था,अब हम कुछ देर  थके हारे खड़े रहे थे । तभी एक साइकिल वाले को आते देख उसे रुकवाते हैं,हम उसे किसी भी तरह बिर्रा छोड़ने के लिए कहते है,पर उसने अपने पुरे साइकिल में झाड़ू बांध रखा था,वो उसे बेचने के लिए बिर्रा ले जा रहा था ,पर वो फिर भी एक को ले जाने के लिए तैयार हो गया,उसकी भी मज़बूरी थी साइकिल में जगह ही नहीं था। हम भाई एक दूसरे को उसके साथ जाने के लिए बोलते हैं पर ना भाई मेरे बिना जाने वाला था ना मैं उसके बिना । हम साइकिल वाले को भेज देते हैं,और फिर अपना अथाह सा लगने वाला सफर पूरा करने में लग जाते है । बहुत कोशिशो के बावजूद भी हम बिर्रा को देख ही नहीं पा रहे थे,इतना चलने के बाद भी ऐसा लगता की थोड़ी ही दुर्र चल पाये सूरज भी तेज होते जा रहा था । मरने की हालत में हमें दूर से बिर्रा का प्रवेश द्वार दिखाई दे जाता है,हम एक दूसरे को हिम्मत देते हुए,कि अब बस कुछ ही टाइम में हम पहुँच जायेंगे ,आगे बढ़ते जाते है,पर प्रवेश द्वार था की पास आने का नाम ही नहीं ले रह था। किसी तरह हम प्रवेश द्वार पहुँचते हैं,और पानी की तलाश में पास के कॉलोनी में जाते हैं,क्योकि हम उस टाइम पानी नहीं पीते तो शायद मर ही जाते,बोरिंग से पानी पिते वक़्त मुझे ऐसा लगता है कि, मम्मी  पापा गाड़ी से जा रहे है,भाई को बोलने पर उसने बोला नहीं वो नहीं है,वैसे गाड़ी दूर जा चुकी थी। अब पानी पिने के बाद घर की तरफ चलते है,पास पहुचने पर देखते है घर का दरवाजा बंद है,अब भूक से भी बेहाल और अथाह संघर्ष पानी में डूबता नज़र आता है । और ना चाहते हुए भी आंसू मेरे आँखों पर आ जाता है, पास के लोग आ जाते है,हमें परेशान देख कर,पूछने का दौर चल पड़ता है,और पास में ही किराने का दुकान चलाने वाले साहू चाचा हमें अपनी दुकान पर ले जाते है और शांत कराते हुए ,मिक्सचर खाने को देते हैं,उनके पास ही एक तालदेवरि  का आदमी आता है वो उसको वहां खबर करने के लिए बोलते है,की बच्चे यहाँ आ गए है, 15 मिनट ही बैठे थे की पापा आ गए,उन्हें देख कर हम और भावुक हो गए। पापा हमें होटल ले गए और वहाँ  मनपसंद चीजे खिलाई,और बताया की तुम्हे ऐसा नहीं करना चाहिए था। वहां तालदेवृ में लोगों के गले से खाना नहीं उत्तर रहा है बच्चे कहा गायब हो गए सोचकर,तालाबों जाल फेंककर ढूंढा जा रहा है,पहचान के पुलिस द्वारा बसों को रोककर भी ढूढ़ा जा रहा है,हमने बस भी नहीं रुकवाई ,क्योकि पैसे नहीं थे और मुझे याद नहीं आ रहा की रस्ते में हमें बस दिखा था या नहीं,पापा हमें वापस तालदेवृ ले जाते हैं,हम मना करते हैं पर पापा कहते हैं,मैं तुम दोनों के सामने उन सबको डाँटूंगा,जिन्होंने तुम्हारा ध्यान नहीं रखा और खास कर के दादी को ,और हुआ भी ऐसे ही। बड़ी ही दर्द भरी सफर थी तालदेवरि टू बिर्रा जो बड़े होने के बाद गाड़ी से 10 मिनट भी नहीं लगती,सच है समय बलवान होता है हमेशा से ही ॥। 

3 comments:

  1. अथाह ब्लॉगोदय के चिट्ठा लेन 1 में जोड़ दिया गया है, अब आपका ब्लॉग भी वहां दिखाई देता। ब्लॉगिंग की अजब गजब दुनिया में आपका स्वागत है।

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  2. सधन्यवाद सर..

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